गरम मेरे शहर की हवा कुछ नहीं,
आखिर इसे क्यों हुआ कुछ नहीं।
कुछ जानकर ही किसी ने कहा होगा,
हाथ उठे हैं मगर दुआ कुछ नहीं।
मैं तो पत्थर हूँ मुझे क्या होगा,
क्या तुमको भी हुआ कुछ नहीं ?
उसके हाथ की पीकर भी खड़ा हूँ मैं,
कम ये भी तो जलवा कुछ नहीं।
अब क्या बतलाएं इश्क़ में राजू,
No comments:
Post a Comment